Quantcast
Channel: समाज – NavBharat Times Blog
Viewing all articles
Browse latest Browse all 25

बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो

$
0
0

अक्षय शुक्ला

स्कूल बसों के आने का समय हो गया था। सोसायटी के गेट पर बने बस स्टॉप पर अभिभावक बच्चों के आने का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ महिलाएं आपस में बात कर रही थीं। सनी के पेपर कैसे जा रहे हैं भाभीजी, अब तो नौवीं में आ जाएगा, उसके बारे में कुछ सोचा आपने? जवाब मिला, अभी तो कुछ नहीं सोचा, उसका मन तो दिन भर खेल-कूद में ही लगा रहता है, पता नहीं क्या करेगा। पहली वाली ने कहा, हमने तो हमारे मोनू के बारे में तय कर लिया है, अब आठवीं में आ जाएगा, यही सही समय होता है इन्हें कोचिंग में डालने का, मोनू के पापा तो उसे कोटा भेजने की तैयारी में हैं, अभी से कोचिंग शुरू होगी तभी आईआईटी की सीट की गारंटी रहेगी। मोनू की मां के इस अति आत्मविश्वास से सनी की मां के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। उन्होंने पूछा, अभी तो बहुत छोटा है, वहां कैसे रहेगा? मोनू की मां बोलीं, अरे उसकी उम्र के बहुत से बच्चे वहां पढ़ रहे हैं, कुछ समय के लिए मैं भी साथ चली जाऊंगी और जब अडजस्ट हो जाएगा तो हॉस्टल में डाल देंगे। इतनी देर में बस आ गई। सनी और मोनू अन्य बच्चों के साथ मस्ती करते हुए बस से उतर रहे थे, इस बात से एकदम अनजान कि बस स्टॉप पर ही उनका भविष्य तय कर लिया गया है।

यह अकेली इनकी कहानी नहीं, ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें यह लगता है कि कोटा के कोचिंग संस्थानों के पास मानो कोई चमत्कारिक बूटी है कि वो बच्चे को इंजीनियर या डॉक्टर बना देंगे। इसी उम्मीद के साथ वे कम उम्र में ही बच्चों को वहां भेज रहे हैं। बच्चा क्या करना चाहता है, उसका किस चीज़ मे मन लगता है, इसे नज़रंदाज़ करते हुए, उस पर अपने अरमानों का बोझ लाद देते हैं। यही वजह है कि इनमें से कई बच्चे मानसिक दबाव झेल नहीं पाते।

पिछले दस साल में कोटा में 124 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी की है। पिछले साल 25 छात्रों ने जान दे दी। साल 2024 के पहले दो महीनों में ही चार छात्र स्यूसाइड कर चुके हैं।

राजस्थान सरकार ने सदन में दिए लिखित जवाब में कोचिंग के छात्रों के जान देने के चार मुख्य कारण बताए हैं- टेस्ट में खराब प्रदर्शन पर आत्मविश्वास कम होना, पैरंट्स की उम्मीदों का दबाव, शारीरिक व मानसिक तनाव और पैसों की कमी। कुछ मामले ब्लैकमेल और लव अफेयर्स के भी हैं, लेकिन इनकी संख्या बेहद कम है। ज़्यादातर मामले पैरंटल प्रेशर और परीक्षा में स्कोर न कर पाने से उपजे तनाव के ही हैं।

दरअसल, सारे कोचिंग सेंटर्स वीकली टेस्ट लेते हैं। और ये टेस्ट एवरेज और बिलो एवरेज स्टूडेंट्स के कॉन्फिडेंस को बुरी तरह डगमगा देते हैं। ऐसे छात्रों के लिए काउंसलिंग सेशन आयोजित किया जाता है। कमज़ोर प्रदर्शन करने वाले स्टूडेंट्स के पैरंट्स को भी सूचित किया जाता है। ऐसे बच्चे टेंशन में आ जाते हैं कि माता-पिता ने इतना खर्च किया है, इतने सपने पाले हैं, उन्हें खराब परफॉरमेंस का पता चलेगा तो क्या होगा? और यही, कुछ बच्चों के लिए, घातक कदम उठा लेने का ट्रिगर पॉइंट बन जाता है।

कोचिंग सेंटर्स के बीच भी इंजीनियर्स और डॉक्टर्स पैदा करने की होड़ ने कई बुराइयों को जन्म दे दिया है। इन संस्थानों को सिर्फ नंबर लाने वाले छात्रों से ही मतलब है, जिनके लिए अलग सेक्शन, बेस्ट टीचर्स की व्यवस्था की जाती है। ऐसी क्लास से बाहर रह जाने वाले बच्चों का कॉन्फिडेंस ही कम हो जाता है। ऐसे छात्र इन संस्थानों के लिए बस कमाई करने का ज़रिया बन गए हैं। एक क्लास में सौ से अधिक बच्चे एक साथ पढ़ते हैं। आप ही सोचिए कि बड़ी सी हॉलनुमा क्लास में एक टीचर इतने सारे बच्चों, खासकर पीछे बैठने वालों पर क्या ध्यान दे पाता होगा।

खुदकुशी के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य सरकार 2018 में कोचिंग सेंटर्स के लिए गाइडलाइंस भी लाई, लेकिन उसका कोई असर नहीं दिखा। अब सरकार राजस्थान कोचिंग इंस्टीट्यूट्स कंट्रोल एंड रेगुलेशन बिल लाने की तैयारी में है। इसके तहत कोचिंग में दाखिले से पहले एक एप्टिट्यूड टेस्ट को कंपलसरी बनाया जाएगा। इससे उन छात्रों की पहचान करने में मदद मिलेगी, जो इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढ़ाई के लिए कमज़ोर पाए जाएंगे।

पैरंट्स को यह समझना होगा कि कोटा तो पहली सीढ़ी है। ऐसा नहीं कि यहां रहकर आईआईटी क्रैक कर लिया तो फिर सब आसान हो जाएगा। इंजीनियरिंग की पूरी पढ़ाई भी चुनौतियों से भरी है। देश भर के आईआईटी संस्थानों से हर थोड़े दिन में स्टूडेंट्स के जान देने के मामले सामने आते रहते हैं। इनमें से ज़्यादातर पढ़ाई के प्रेशर की वजह से ही यह कदम उठाते हैं।

देखिए, अब तीस साल पहले वाला ज़माना तो रहा नहीं कि आपके पास करियर के एक या दो विकल्प ही होते थे। आज हर फील्ड में अवसरों की भरमार है। बच्चे पर अपने सपने थोपने के बजाय उसे खुद के सपने देखने का अवसर दें। ऐसा माहौल बनाएं कि बच्चा बेफिकर होकर अपने मन की बात आपसे शेयर कर सके। उसके साथ बैठें, बात करें, ऑप्शंस बताएं, उसकी दिलचस्पी देखें और फिर तय करें कि वह किस दिशा में जाना चाहता है। और हां, उसे यह भरोसा ज़रूर दें कि तुम जो कुछ भी करना चाहते हो, हम हर हाल में तुम्हारे साथ हैं।

 

 


Viewing all articles
Browse latest Browse all 25

Latest Images

Trending Articles





Latest Images